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घरेलु बागवानी में नीम के उपयोग


नीम से आप सभी परिचित है और इसके गुणों से हम बचपन से परिचित रहे है। इसके उपयोग और महत्त्व को हमारे पूर्वजो ने तभी पहचान लिया था और जहाँ भी अपनी बस्ती बनायी स्वयं को रोगमुक्त रखने के लिए नीम के पेड़ लगाये। आज भी हमें देखने को मिलता है कि अधिकांश नीम के पेड़ हमारी ग्रामीण बस्तियों के आस-पास लगे हुए हैं। नीम बहुउपयोगी गुणों के कारण सबको अपनी ओर आकृर्षित करता है। इसकी पत्तियाँ, छाल, फूल, फल, जड़ व तना सभी का विशेष औषधिय महत्व है।इसके औषधिय एवं कीटनाशक गुणों के बारे में हमारे पूर्वज ज्यादा जानते थे उन्होंने प्राचीन ग्रन्थों में इसका वर्णन इस प्रकार किया है ।

निम्बपत्र स्मृत नेत्र्यं पित्त विषम प्रणुत।
वातलन कटुपाकं च सर्वोरोचक कुष्ठनुत।।
निम्बफल रसे तिक्तं पाके तु कटुमेद नम्।
स्निग्ध लघुष्णा कुष्ठध्प गुल्मार्शः कृमि मेहनुत।।

नीम में विभिन्न प्रकार के रोग, कीट, कृमि एवं विकारों को नष्ट करने की चमत्कारी शक्ति होती है। लेकिन आज हम अपने आस-पास मौजूद प्रकृति के श्रेष्ठ उपहार को भूल रहे हैं। हमारे पुराने नीम के पेड़ धीरे-धीरे नष्ट हो रहे हैं तथा पौधों का रोपण न के बराबर होने के कारण नीम के पौधों की संख्या में लगातार गिरावट आ रही है। वर्तमान समय में अपनी एवं फसलों की सुरक्षा के लिए अनेक कृत्रिम रसायनों का अंधाधुंध उपयोग करने के परिणामस्वरूप हमने जल, जमीन, खाद्य सामग्री एवं सम्पूर्ण वातावरण को जहरीला बना लिया है। परिणाम यह हुआ कि हर रोज हमें अनेक नई-नई असाध्य बीमारियों का सामना करना पड़ रहा है। इन कृत्रिम रसायनों के प्रभाव से मानव को रोग मुक्त करना तो दूर इनके दुष्प्रभाव से हमारा स्वास्थ्य, पर्यावरण, प्राकृतिक विरासत एवं धन की लगातार बर्बादी हो रही है। नीम से लगभग 80 प्रकार के रसायन निकाले गये हैं जिनका उपयोग कीटनाशक, फफूंदनाशक, कृमिनाशक एवं अन्य औषधियों के उत्पादन में मुख्य रूप से होता है। नीम से प्राप्त तत्वों की लगभग 400 प्रकार के कीटों, 112 सूत्रकृमियों तथा 15 कवकों के विरूद्ध कार्य क्षमता जांची गई है और प्रभावी होने के कारण पुरे विश्व में लगभग 200 फार्मुलेशन उपलब्ध हैं एवं भारत में भी 40 से 50 उत्पाद रजिस्टर्ड हैं।

हमारे द्वारा नकारे गये नीम के इन गुणों का फायदा अब बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ उठा रही हैं। ये किसानों के यहाँ से कच्चा माल बहुत सस्ती दरों पर एकत्रित करती हैं और नीम की निम्बोली एवं पत्तियों से कीटनाशक, फंफूदनाशक, कृमिनाशक एवं अन्य दवाइयाँ बनाकर महंगे दामों में बेच रही हैं। आज कीटनाशकों के बढ़ते हानिकारक प्रभाव व आर्थिक दबाव को कम करने व पर्यावरण में संतुलन बनाये रखने हेतु जरूरी है कि अधिक से अधिक संख्या में नीम के पौधों का रोपण करें तथा घरेलू स्तर पर स्वयं इसके विभिन्न कीटनाशक उत्पाद जैसे निम्बोली का चूर्ण, नीम की पत्तियों से खाद आदि तैयार करने चाहिए। पौधों में इनके प्रयोग से पर्यावरण सुरक्षित रहता है तथा लाभदायक मित्र कीटों पर भी कोई विपरीत प्रभाव नहीं पड़ता है।

नीम से बनने वाले अनेक घरेलू उत्पाद 

 
नीम के विभिन्न उत्पादों को आप स्वयं घरेलू स्तर पर तैयार कर सकते हैं जो बहुत ही कारगर एवं प्रभावी होते हैं।

1. निम्बोली का अर्क : साफ़ छिलका रहित निम्बोली का बीज लेकर उससे अर्क तैयार किया जाता है। अर्क के निकालने हेतु 350 ग्राम गुठली को बारीक पीसकर लगभग 10 लीटर पानी में 24 घण्टे तक भिगोते हैं। तत्पश्चात रस को अच्छी प्रकार से छान लेते हैं तथा इसका पौधों पर छिड़काव किया जाता है। आवश्यकता हो तो 7 दिन के अन्तर पर छिड़काव को दोहराना चाहिए। इसके प्रयोग करने से पौधों पर किसी प्रकार का दुष्प्रभाव नहीं आता है तथा कीट पौधों से अपना भोजन लेने में असमर्थ हो जाते हैं। बचे हुए पदार्थ का उपयोग आप गमले में या भूमि पर लगे पौधे में खाद के रूप में कर सकते है जो दीमक और निमेटोड दूर रखने में सहयोगी होगा।

2. नीम की पत्तियों का अर्क : नीम की पत्तियों का अर्क पौधे पर लगने वाले कीटों को प्रतिकर्षित करता है, जिससे फसल में कीट हानि कम होती है। बनाने के लिए आपको नीम की पत्तियाँँ 5 किलोग्राम और गाय का मूत्र 10 लीटर की आवश्यकता होगी। बनाने के लिए 10 लीटर गाय के मूत्र को एक पुरानी मटकी या ताम्बे के बर्तन में लेते है उसके बाद लगभग 5 किलोग्राम नीम की पत्तियों को बारीक काटकर डालतें है और बर्तन के मुँह को बंद करके धूप में 10 दिन के लिए रख देते है। 10 दिन के बाद अर्क को छानकर रख लें। उपयोग के समय 50 मिलीलीटर मात्रा प्रति लीटर पानी के अनुपात से पौधों पर छिड़काव करें। 

3. नीम की पत्तियों का काढ़ा : पाँच किलोग्राम नीम की हरी पत्तियों को मिक्सी अथवा खरल में डालकर लुग्दी बनाते हैं। इसे 10 लीटर पानी में डालकर अच्छी तरह उबालें और ठंडा होने पर कपडे से छान लें। तैयार काढ़े की 100 मिलीलीटर मात्रा को 1 लीटर पानी में मिलाकर अपने पौधों पर छिड़काव करें। 

4. नीम की पत्ती का चूर्ण : नीम की पत्ती को छाया में सुखाकर उसका चूर्ण बनाकर रख लें। इस चूर्ण का उपयोग गमलों में किया जा सकता है। छोटे गमले में 25 ग्राम, मध्यम गमले में 50 ग्राम और बड़े गमलो में 100 ग्राम चूर्ण पोषक तत्वों की जरुरत को पूरा करने के साथ ही भूमिगत कीड़ो से बचाव करेगा। 

5.. नीम की खली : नीम की गुठली से तेल निकालने के बाद बचे अवशेष को नीम की खली कहतें हैं। नीम की खली में भी कीटनाशी, फफूंदनाशी व सुत्रकृमि नाशी गुणों के साथ-साथ पोषक तत्वों की भरपूर मात्रा पाई जाती है। इसमें लगभग 5 प्रतिशत नाइट्रोजन, 1 प्रतिशत फाॅस्फोरस तथा 1.5 प्रतिशत पोटाश पाया जाता है। नीम की खली मृदा में रहने वाली फफूंद व सूत्रकृमियों को नियंत्रित करती है। आवश्यकता अनुसार 20 से 25 ग्राम मात्रा प्रति गमला या 50 से 100 ग्राम मात्रा प्रति वर्ग मीटर प्रयोग की जा सकती है। 

6. नीम की पत्तियों की हरी खाद : नीम की हरी पत्तियों को पर्याप्त मात्रा में इक्ट्ठा कर शाखाओं से अलग कर लेते हैं। इस प्रकार प्राप्त पत्तियों को सड़ाकर खाद तैयार की जाती है। ये खाद भूमिगत कीड़ो को रोकने में सामान रूप से प्रभावी है। अन्य पत्तों के साथ मिलाकर भी खाद को तैयार किया जा सकता है।

Happy Gardening !!!

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